जिंदगी का सफर (8HIN16)
सफर में जिंदगी के कितना कुछ सामान रहता है,
वो खुशकिस्मत है, जिसका हमसफर ईमान रहता है ।
सुखी वह है, जमीं से जो जुड़ा इनसान रहता है,
नदी चलती है झुककर, रास्ता आसान रहता है ।
मेरा परमात्मा मेरी तरह बिल्कुल अकेला है,
मुझे उसका, उसे मेरा हमेशा ध्यान रहता है ।
वे मरकर भी अमर हैं, प्यार है तप-त्याग से जिनको,
चला जाता है जब इनसान, तब बलिदान रहता है ।
मेरे भी पास यादों और सपनों के खजाने हैं,
भिखारी के भी घर में कुछ न कुछ सामान रहता है ।
जरूरी है करे नेकी तो खुद दरिया में डाल आए,
निराशा उसको होती है जो आशावान रहता है ।
ये दुनिया धर्मशाला है, यहाँ बस आना-जाना है,
यहाँ ऐसे रहो जैसे कोई मेहमान रहता है ।