तुम मुझे खून दो (8HIN12)
दोस्तो ! बारह महीने पहले पूर्वी एशिया में भारतीयों के सामने ‘संपूर्ण सैन्य संगठन’ या ‘अधिकतम बलिदान’ का कार्यक्रम पेश किया गया था । आज मैं आपको पिछले साल की हमारी उपलब्धियों का ब्योरा दूँगा तथा आने वाले साल की हमारी मांॅगें आपके सामने रखूँगा । ऐसा करने से पहले मैं आपको एक बार फिर यह एहसास कराना चाहता हूँकि हमारे पास आजादी हासिल करने का कितना सुनहरा अवसर है ।
हमारे संघर्ष की सफलता के लिए मैं बहुत अधिक आशावादी हूँ क्योंकि मैं केवल पूर्व एशिया के ३० लाख भारतीयों के प्रयासों पर निर्भर नहीं हूँ । भारत के अंदर एक विराट आंदोलन चल रहा है तथा हमारे लाखों देशवासी आजादी हासिल करने के लिए अधिकतम दुख सहने
और बलिदान के लिए तैयार हैं । दुर्भाग्यवश, सन १85७ के महान संघर्ष के बाद से हमारे देशवासी निहत्थेहैं जबकि दुश्मन हथियारों से लदा हुआ है । आज के इस आधुनिक युग में निहत्थे लोगों के लिए हथियारों और एक आधुनिक सेना के बिना आजादी हासिल करना नामुमकिन है । अब जरूरत सिर्फ इस बात की है कि अपनी आजादी की कीमत चुकाने के लिए भारतीय स्वयं आगे आएँ ! ‘संपूर्ण सैन्य संगठन’ के कार्यक्रम के अनुसार मैंने आपसे जवानों, धन और सामग्री की माँग की थी । मुझे आपको बताने में खुशी हो रही है कि हमें पर्याप्त संख्या में रंगरूट मिल गए हैं । हमारे पास पूर्वी एशिया के हर काेने से रंगरूट आए हैं-चीन, जापान, इंडोचीन, फिलीपींस, जावा, बोर्नियों, सेलेबस, सुमात्रा, मलाया, थाईलैंड और बर्मा से।
आपको और अधिक उत्साह एवं ऊर्जा के साथ जवानों, धन तथा सामग्री की व्यवस्था करते रहना चाहिए, विशेष रूप से आपूर्ति और परिवहन की समस्याओं का संतोषजनक समाधान होना चाहिए । सबसे बड़ी समस्या युद्धभूमि में जवानों और सामग्री की कुमक पहुँचाने की है । यदि हम ऐसा नहीं करते तो हम मोर्चों पर अपनी कामयाबी को जारी रखने की आशा नहीं कर सकते, न ही हम भारत के आंतरिक भागों तक पहुँचने में कामयाब हो सकते हैं।
आपमें से उन लोगों को, जिन्हें आजादी के बाद देश के लिए काम जारी रखना है, यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि पूर्वी एशिया-विशेष रूप से बर्माहमारे स्वातंत्र्य संघर्ष का आधार है । यदि आधार मजबूत नहीं है तो हमारी लड़ाकू सेनाएँ कभी विजयी नहीं होंगी । याद रखिए कि यह एक ‘संपूर्ण युद्ध’ है- केवल दो सेनाओं के बीच का युद्ध नहीं है, इसीलिए पिछले पूरे एक वर्ष से मैंने पूर्व में ‘संपूर्ण सैन्य संगठन’ पर इतना जोर दिया है । मेरे यह कहने के पीछे कि आप घरेलू मोर्चे पर और अधिक ध्यान दें, एक और भी कारण है । आने वाले महीनों मंे मैं और मंत्रिमंडल की युद्ध समिति के मेरे सहयोगी युद्ध के मोर्चे पर और भारत के अंदर क्रांति लाने के लिए भी अपना सारा ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं । इसीलिए हम इस बात को पूरी तरह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि हमारी अनुपस्थिति में भी कार्यनिर्बाध चलता रहे।
साथियो, एक वर्ष पहले, जब मैंने आपके सामने कुछ माँगें रखी थीं, तब मैंने कहा था कि यदि आप मुझे ‘संपूर्ण सैन्य संगठन’ दें तो मैं आपको एक ‘दूसरा मोर्चा’ दूँगा । मैंने अपना वह वचन निभाया है । हमारे अभियान का पहला चरण पूरा हो गया है । हमारी विजयी सेनाओं ने निप्योनीज सेनाओं के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर शत्रु को पीछे धकेल दिया है और अब वे हमारी प्रिय मातृभूमि की पवित्र धरती पर बहादुरी से लड़ रही हैं । अब जो काम हमारे सामने है, पूरा करने के लिए कमर कस लें । मैंने आपसे जवानों, धन और सामग्री की व्यवस्था करने के लिए कहा था । मुझे वे सब भरपूर मात्रा में मिल गए हैं । अब मैं आपसे कुछ और चाहता हूँ । जवान, धन और सामग्री अपने आप विजय या स्वतंत्रता नहीं दिला सकते । हमारे पास ऐसी प्रेरक शक्ति होनी चाहिए, जाे हमें बहादुर व नायकोचित कार्यों के लिए प्रेरित करे।
सिर्फ इस कारण कि अब विजय हमारी पहुँच में दिखाई देती है, आपका यह सोचना कि आप जीते-जी भारत को स्वतंत्र देख ही पाएँगे,
आपके लिए एक घातक गलती होगी । यहाँ मौजूद लोगों में से किसी के मन में स्वतंत्रता के मीठे फलों का आनंद लेने की इच्छा नहीं होनी चाहिए। एक लंबी लड़ाई अब भी हमारे सामने है । आज हमारी केवल एक ही इच्छा होनी चाहिए-मरने की इच्छा, जिससे स्वतंत्रता की राह शहीदों के खून से बनाई जा सके । साथियो, स्वतंत्रता युद्ध के मेरे साथियो ! आज मैं आपसे एक ही चीज माँगता हूँ; सबसे ऊपर मैं आपसे अपना खून माँगता हूँ । यह खून ही उस खून का बदला लेगा, जो शत्रु ने बहाया है । खून से ही आजादी की कीमत चुकाई जा सकती है । तुम मुझे खून दो और मैं तुमसे आजादी का वादा करता हूँ।