प्राकृतिक सौंदर्य से पूर्ण ‘अल्मोड़ा’ (8HIN14)
गरमी की छुट्टियाँ शुरू हो गईं, मैं बच्चों के साथ एक रात छत पर बैठा था, सारे बच्चे कहीं बाहर घूमने जाने के लिए उत्साहित थे । कहने लगे-‘अप्पी ! क्यों न इस बार किसी पहाड़ की यात्रा का प्लान बनाएँ?’ बच्चे तुरंत मानचित्र उठा लाए और मनपसंद स्थान की खोज शुरू हो गई । चर्चा के बाद उत्तराखंड के कुमाऊँ मंडल जाना तय हुअा। कुमाऊँ मंडल अपनी प्राकृतिक सुषमा और सुंदरता के लिए विख्यात है।
अब तनिष्क, तेजस, भावेश, श्रुति और मैं, हम सबने यात्रा की सूची बनाकर पूरी योजना बनाई । जिज्ञासावश तनु ने सवाल किया- ‘अप्पी, कुमाऊँ कहाँ है ? कुछ बताइए न ।’ तब मैंने बताया, कुमाऊँ मंडल भारत के उत्तराखंड राज्य के दो प्रमुख मंडलों में से एक है । कुमाऊँ मंडल के अंतर्गत अल्मोड़ा, बागेश्वर, चंपावत, नैनीताल, पिथौरागढ़ तथा उधमसिंह नगर आते हैं । सांस्कृतिक वैभव, प्राकृतिक सौंदर्य और संपदा से संपन्न इस अंचल की एक क्षेत्रीय पहचान है । यहाँ के आचारविचार, रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा, प्रथा-परंपरा, रीति-रिवाज, धर्म-विश्वास, गीत-नृत्य, भाषा-बोली सबका एक विशिष्ट स्थानीय रंग है । लोक साहित्य की यहाँ समृद्ध वाचिक परंपरा विद्यमान है । कुमाऊँ का अस्तित्व भी वैदिक काल से ही है ।
अब जाने का दिन आया । बड़े सबेरे उठकर सबने तैयारी की और चल पड़े अपनी यात्रा पर । हम सर्वप्रथम नैनीताल पहुँचे, हमारे कॉटेज बुक थे । वहाँ के तालों, प्राकृतिक सुषमा एवं मौसम का आनंद ले हम अल्मोड़ा के लिए रवाना हुए । देवदार के वृक्षों से ढकी मोहक घाटियों के बीच सर्पीली सड़क पर हमारी कार तेज रफ्तार से दौड़ रही थी । रास्ते में पहाड़ों पर बने सीढ़ीनुमा खेत और उसमें काम करते लोग । श्रम से अपनी जीविका चलाने वालों के चेहरों पर अजीब-सी अलमस्ती और निश्चिंतता झलकती है । दूसरे दिन सुबह हम सब तैयार होकर अल्मोड़ा देखने निकले। जैसा पढ़ा या सुना था वैसा ही यहाँ देखने को भी मिल रहा था। राजा कल्याणचंद द्वारा स्थापित अल्मोड़ा, घोड़े की नाल के आकार के अर्धगोलाकार पर्वत शिखर पर बसा है । चीड़ एवं देवदार के घने पेड़, हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियांे ने आज भी इसके प्राचीन स्वरूप को सँजोए रखा है । अल्मोड़ा के बस स्टैंड के पास ही गोविंदवल्लभ पंत राजकीय संग्रहालय में कुमाऊँ के इतिहास व संस्कृति की झलक मिलती है । यहाँ विभिन्न स्थानों से खुदाई में मिली पुरातन प्रतिमाओं तथा स्थानीय लोककलाओं का अनूठा संगम है। ‘ब्राइट एंड कार्नर’ यह अल्मोड़ा के बस स्टेशन से केवल दो किमी. की दूरी पर एक अद्भुत स्थल है । इस स्थान से उगते और डूबते हुए सूर्य के दृश्य देखने हजारों मील से प्रकृति प्रेमी आते हैं । रात हमने पहाड़ी भोजन का आस्वाद लिया। तीसरे दिन सवेरे अल्मोड़ा से पाँच किमी दूरी पर स्थित काली मठ चल दिए। काली मठ ऐसा स्थान है जहाँ से अल्मोड़ा की खूबसूरती कोजी भरकर निहारा जा सकता है । काली मठ के पास ही कसार देवी मंदिर है, वहाँ से हम ‘बिनसर’ गए ।
‘बिनसर’ अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए प्रसिद्ध है । गाइड ने बताया-‘बिनसर’ का अर्थ भगवान शिव है। सैकड़ों वर्ष पुराना नंदादेवी मंदिर अपनी दीवारों पर उकेरी गई मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध है । यहाँ पर स्थित ‘गणनाथ’ एक प्रसिद्ध शिव मंदिर है । वहाँ से हम सब पहुँचे तीन सौ वर्ष पुराना सूर्य मंदिर देखने । कोणार्क के बाद देश का दूसरा महत्त्वपूर्ण सूर्य मंदिर है । यह अल्मोड़ा से सत्रह किमी की दूरी पर है । कुमाऊँ के लोगों की अटूट आस्था का प्रतीक है गोलू चितई मंदिर । इस मंदिर में पीतल की छोटी-बड़ी घंटियाँ ही घंटियाँ टँगी मिलती हैं । वहाँ से हम ‘जोगेश्वर’ मनोहर घाटी, जो देवदार के वृक्षों से ढँकी है, देखने गए । अल्मोड़ा सुंदर, आकर्षक और अद्भुत है इसीलिए उदयशंकर ने अपनी ‘नृत्यशाला’ यहीं बनाई थी । वहाँ विश्वविख्यात नृत्यकार शिशुओं ने नृत्य कला की प्रथम शिक्षा ग्रहण की थी । उदयशंकर की तरह विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर को भी अल्मोड़ा पसंद था । विश्व में वेदांत का शंखनाद करने वाले स्वामी विवेकानंद अल्मोड़ा में आकर अत्यधिक प्रसन्न हुए । उन्हें यहाँ आत्मिक शांति मिली थी।
मैंने बच्चों को बताया-कुमाऊँनी संस्कृति का केंद्र अल्मोड़ा है । कुमाऊँ के सुमधुर गीतों और उल्लासप्रिय लोकनृत्यों की वास्तविक झलक अल्मोड़ा मंे ही दिखाई देती है । कुमाऊँ भाषा का प्रामाणिक स्थल भी यही नगर है । कुमाऊँनी वेशभूषा का असली रूप अल्मोड़ा में ही दिखाई देता है । आधुनिकता के दर्शन भी अल्मोड़ा में होते हैं । यहाँ का पहाड़ी भोजन, मिठाई और सिंगौड़ी प्रसिद्ध हैं।
सारे प्राकृतिक दृश्यों को हृदय और कैमेरे में कैद कर हम सब गांधीजी के प्रिय स्थल कौसानी के लिए अगले दिन रवाना हो गए ।