हृदय का उजाला (8HIN1)
जलाते हो क्यों तुम दीप स्नेह भर-भर,
अपने दिलों के दीप तो जलाओ ।
सजाते हो तुम सब उजालों से घर क्यों,
अँधेरे हृदय में उजाला तो लाओ ।
कहीं तो दीवाली, कहीं सूनापन है,
कहीं झूमें खुशियाँ कहीं गम ही गम है,
उन दीन-दुखियों के दुख को मिटाओ,
अपने दिलों के दीप तो जलाओ ।
न फुलझड़ियाँ चमकाओ, न फोड़ो पटाखे,
भोजन नहीं जिनके, दे आओ जा के ।
उनके जखमों पर मलहम लगाओ,
अपने दिलों का दीप तो जलाओ ।
जला दीप तुमने अँधेरा मिटाया,
पर क्या किसी भूखे को भोजन कराया ?
उजालों की चाहत कभी न रही जिनकी,
रोटी तुम उनको जाकर खिलाओ ।
पहला ही दीपक बहुत है अँधेरे को,
अनगिन दीप मिल न दिल को सजाते ।
उनके दिलों से पूछो तो जाकर,
जखमों पर स्नेहक जो लगा तक न पाते ।
बुझे दिल में उनके ज्योति जलाओ,
अँधेरे हृदय में उजाला तो लाओ ।